पहनी बदरी की सारी
सोहे सतरंगी किनारी
बरखा रानी आ रहीं
हुई गर्जना भारी
गीत पपीहा बाचे
मन मयूरी नाचे
बन उपवन सब भीग रहे
भीगे नर अरु नारी
बरखा रानी…………
बहे मंद पुरवाई
लेत लता अंगड़ाई
झूम रहा है तरुण तरु
सखियाँ तू भी आ री
बरखा रानी…………..
ओ बदरा हरजाई
देख नदी उफनाई
लहर – लहर, लहराकर तुझ पर
जाये बलि – बलिहारी
बरखा रानी……………..
सोंधी मिट्टी महके
जिया हमारा बहके
आजा सजना मेरे अँगना
सुन लो अरज हमारी
बरखा रानी……………….
मन की नैया डोले
देखो होले – होले
जाना है उस पार सजन
कर लें अब तैयारी
बरखा रानी……………….
बहुत सुन्दर रचना
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बहुत शुक्रिया वंदना जी
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