ऋतु फागुन में घोल – घोल रंग ।
करुंगी हुड़दंग री सखि।
साँसें छेड़ रही हैं सरगम
पायल संग – संग बाजे छम – छम
हुआ जाये मेरा मन मतंग
करुंगी हुड़दंग री सखि
महकी – महकी है अंगड़ाई
बदली – बदली है पुरवाई
बदल लूंगी मैं अपना भी ढंग
करुंगी हुड़दंग री सखि
सावन से लेकर हरियाली
टेसू से माँगूंगी लाली
लगाके रंग बसंती को अंग
करुंगी हुड़दंग री सखि
लेकर सरसों से रंग पीला
और गगन से थोड़ा नीला
सागर से चुरा के तरंग
करुंगी हुड़दंग री सखि।
मस्ती में कर के करताली
दूंगी मैं चुन – चुन कर गाली
अब किसी ने किया जो मुझे तंग
करुंगी हुड़दंग री सखि
अक्षर – अक्षर तोल – मोल कर
शब्दों में रस प्रेम घोलकर
भर कर के मैं भावों का भंग
करुंगी हुड़दंग री सखि
